केंद्र और त्रिपुरा ने दो उग्रवादी समूहों के साथ समझौता किया; 328 से अधिक उग्रवादी हथियार छोड़ेंगे
Thursday, 05 Sep 2024 13:30 pm

The News Alert 24

त्रिपुरा में शांति स्थापना के एक महत्वपूर्ण कदम के तहत, केंद्र सरकार और त्रिपुरा सरकार ने दो उग्रवादी समूहों के साथ एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत, 328 से अधिक उग्रवादी हथियार छोड़ने और मुख्यधारा में शामिल होने के लिए सहमत हुए हैं। यह कदम पूर्वोत्तर भारत में शांति और स्थिरता बहाल करने की दिशा में एक बड़ा मील का पत्थर माना जा रहा है।

समझौते का विवरण और महत्व

यह समझौता केंद्रीय गृह मंत्रालय, त्रिपुरा सरकार, और दो प्रमुख उग्रवादी समूहों - नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT) और ऑल त्रिपुरा टाइगर फोर्स (ATTF) के प्रतिनिधियों के बीच हुआ है। इन उग्रवादी संगठनों ने लंबे समय से राज्य में सशस्त्र संघर्ष किया है, लेकिन अब वे हिंसा का रास्ता छोड़कर शांति प्रक्रिया में शामिल होने को तैयार हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस समझौते को पूर्वोत्तर में शांति और विकास की दिशा में एक बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह समझौता केवल त्रिपुरा के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए एक सकारात्मक संदेश है। इससे अन्य उग्रवादी समूहों को भी शांति और बातचीत का रास्ता अपनाने के लिए प्रेरणा मिलेगी।

उग्रवादियों का आत्मसमर्पण और पुनर्वास योजना

इस समझौते के तहत, आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों को एक पुनर्वास पैकेज मिलेगा, जिसमें उन्हें पुनर्वास की सुविधा, आर्थिक सहायता और रोजगार के अवसर दिए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, त्रिपुरा सरकार ने भी आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों के पुनर्वास के लिए एक विशेष नीति की घोषणा की है, जिसके तहत उन्हें समाज की मुख्यधारा में वापस लाने के लिए कौशल विकास और शिक्षा की सुविधा प्रदान की जाएगी।

गृह मंत्री ने कहा, "इस समझौते के माध्यम से हम इन उग्रवादियों को समाज की मुख्यधारा में लाकर उन्हें एक नया जीवन देने का प्रयास कर रहे हैं।" इस कदम का उद्देश्य राज्य में दीर्घकालिक शांति और विकास सुनिश्चित करना है।

त्रिपुरा में उग्रवाद का इतिहास

त्रिपुरा में उग्रवाद का इतिहास लंबा रहा है, जहां कई उग्रवादी समूह अपनी अलग-अलग मांगों के लिए हथियार उठाते रहे हैं। NLFT और ATTF जैसे समूह लंबे समय से राज्य में अलगाववादी हिंसा और आतंकवाद में शामिल रहे हैं। इन समूहों का मुख्य उद्देश्य त्रिपुरा की स्वायत्तता को बढ़ावा देना और आदिवासी समुदायों के अधिकारों की सुरक्षा करना था।

हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, भारतीय सुरक्षा बलों और त्रिपुरा पुलिस के लगातार प्रयासों के कारण इन समूहों की गतिविधियों में कमी आई है। इसके साथ ही, केंद्र और राज्य सरकारों ने भी बातचीत और विकास के जरिए उग्रवादियों को मुख्यधारा में लाने की दिशा में कदम उठाए हैं।

स्थानीय जनता और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया

इस समझौते को लेकर त्रिपुरा की स्थानीय जनता और राजनीतिक दलों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की है। राज्य के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब ने इसे त्रिपुरा के लिए एक ऐतिहासिक दिन बताया और कहा कि इससे राज्य में शांति और विकास के नए द्वार खुलेंगे।

कई स्थानीय नेताओं और सामाजिक संगठनों ने भी इस कदम का स्वागत किया है। उनका मानना है कि इस तरह के समझौते से राज्य में शांति और समृद्धि की दिशा में एक नया अध्याय शुरू होगा।

पूर्वोत्तर में शांति स्थापना के प्रयास

पिछले कुछ वर्षों में, केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवादियों के साथ शांति समझौतों की दिशा में कई कदम उठाए हैं। नागालैंड, मिजोरम, असम और मणिपुर जैसे राज्यों में भी इसी तरह के समझौते किए गए हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के शांति समझौते न केवल उग्रवाद को खत्म करने में मदद करते हैं, बल्कि क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी अनुकूल वातावरण बनाते हैं। इससे स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर मिलते हैं और उन्हें हिंसा के बजाय विकास के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित किया जाता है।

आगे की संभावनाएं और चुनौतियां

हालांकि, यह समझौता त्रिपुरा और पूर्वोत्तर क्षेत्र में शांति की दिशा में एक बड़ा कदम है, लेकिन इसे पूरी तरह से सफल बनाने के लिए अभी भी कई चुनौतियां हैं। आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों के पुनर्वास और उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए ठोस प्रयासों की आवश्यकता है।

इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित करना होगा कि अन्य उग्रवादी समूह इस समझौते से सबक लें और बातचीत के माध्यम से अपने मुद्दों का समाधान खोजें। केवल तब ही हम पूर्वोत्तर भारत में एक स्थायी शांति और विकास का सपना देख सकते हैं।