मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में पिछले एक साल से कैद में रखे गए चीतों के लिए अब तक 24 लाख रुपये मांस की खरीद के लिए आवंटित किए गए हैं। यह चीता पुनर्वास परियोजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य भारत में विलुप्त हो चुके चीतों को फिर से बसाना है। इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत लाए गए चीते अब तक जंगल में छोड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं हुए हैं, जिसके चलते उन्हें विशेष निगरानी में रखा गया है।
भारत सरकार द्वारा शुरू की गई चीता पुनर्वास परियोजना का उद्देश्य देश में चीतों को फिर से जंगलों में स्थापित करना है। यह परियोजना दुनिया की पहली अंतर-महाद्वीपीय चीता पुनर्वास परियोजना है, जिसके तहत नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीतों को भारत लाया गया। परियोजना का उद्देश्य कूनो राष्ट्रीय उद्यान में एक स्थायी चीता आबादी तैयार करना है, लेकिन अब तक इस दिशा में मिश्रित परिणाम ही देखने को मिले हैं।
हालांकि, चीतों को कूनो में एक साल से भी अधिक समय हो चुका है, लेकिन अब तक उन्हें पूरी तरह से जंगल में नहीं छोड़ा गया है। परियोजना से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि चीतों के जंगल में खुद से शिकार करने की क्षमता को लेकर अभी भी संदेह बना हुआ है। इसके अलावा, कूनो के प्राकृतिक आवास में उन्हें छोड़ने से पहले उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य की भी लगातार निगरानी की जा रही है।
विभिन्न पर्यावरणीय और सुरक्षा कारकों को ध्यान में रखते हुए इन चीतों को अभी भी विशेष बाड़े में रखा गया है। इन बाड़ों में उनके लिए आवश्यक मांस की आपूर्ति की जा रही है, ताकि उनकी पोषण संबंधी आवश्यकताएं पूरी हो सकें।
इन चीतों के लिए मांस की खरीद के लिए अब तक 24 लाख रुपये का बजट आवंटित किया जा चुका है। वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि चीतों के लिए गुणवत्ता युक्त मांस की आपूर्ति सुनिश्चित की जा रही है, ताकि उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत बनी रहे।
चीता एक मांसाहारी जानवर है, और उन्हें प्रतिदिन ताजा मांस की आवश्यकता होती है। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि उनके लिए मांस की नियमित आपूर्ति की व्यवस्था हो। वन अधिकारियों ने कहा कि इन चीतों को स्वस्थ रखने के लिए मांस की गुणवत्ता और मात्रा का विशेष ध्यान रखा जा रहा है।
चीता पुनर्वास परियोजना के सामने कई चुनौतियाँ हैं। चीतों को खुले जंगल में छोड़ने की प्रक्रिया अपेक्षित समय से अधिक लंबी हो रही है। इसके पीछे का प्रमुख कारण जंगल में उनके शिकार और सुरक्षा को लेकर चिंता है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि कूनो का पर्यावरण चीतों के लिए पूरी तरह से उपयुक्त नहीं हो सकता है। वे कहते हैं कि चीतों को जंगल में छोड़ने से पहले यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वहां उनका शिकार करने के लिए पर्याप्त संसाधन और सुरक्षित आवास उपलब्ध हैं।
चीतों की शारीरिक स्थिति का भी बारीकी से मूल्यांकन किया जा रहा है। वन अधिकारियों का कहना है कि चीतों के स्वास्थ्य की नियमित जांच की जाती है, और उनकी सेहत पर निरंतर नजर रखी जाती है। इन चीतों में से कुछ का स्वास्थ्य पहले बिगड़ चुका है, जिसके चलते उन्हें विशेष देखभाल की आवश्यकता है।
चीतों को बंदी जीवन में बनाए रखने के कारण वे अब तक खुद शिकार करने में सक्षम नहीं हो पाए हैं, जो कि उनके जंगल में जीवित रहने के लिए आवश्यक है। वन विभाग और विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक उनकी शिकार करने की क्षमता पर भरोसा नहीं हो जाता, तब तक उन्हें जंगल में छोड़ना जोखिम भरा हो सकता है।
कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों को छोड़ने की योजना को लेकर वन विभाग और सरकार की रणनीति जारी है। अधिकारियों का कहना है कि जैसे ही उन्हें यह विश्वास हो जाता है कि चीते जंगल में स्वतंत्र रूप से शिकार कर सकते हैं और सुरक्षित रह सकते हैं, उन्हें जंगल में छोड़ दिया जाएगा।
हालांकि, इस परियोजना की सफलता को लेकर कई पक्षों में संशय है। चीतों की अनुकूलन क्षमता, पर्यावरणीय कारक, और शिकार की उपलब्धता इस परियोजना की सफलता में अहम भूमिका निभाएंगे।