अरविंद केजरीवाल, जो कभी एक सामान्य सरकारी अधिकारी थे, आज दिल्ली की राजनीति के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक माने जाते हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ एक आंदोलनकारी से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने तक का उनका सफर प्रेरणादायक है। आज उन्हें दिल्ली का 'वॉरलॉर्ड' माना जाता है, क्योंकि उन्होंने दिल्ली की राजनीति में ऐसी पकड़ बनाई है जिसे चुनौती देना मुश्किल है। आइए, उनके राजनीतिक सफर पर गहराई से नज़र डालते हैं और समझते हैं कि कैसे अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की राजनीति में खुद को स्थापित किया।
1. साधारण शुरुआत से असाधारण राजनीति तक
अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक यात्रा की शुरुआत साधारण थी। भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में नौकरी करने के बाद, केजरीवाल ने 2006 में सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और सक्रिय सामाजिक कार्यों में जुट गए। उन्हें राइट टू इनफार्मेशन (RTI) आंदोलन से काफी पहचान मिली, जिसके तहत उन्होंने सरकारी पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए काम किया।
लेकिन उनका असली राजनीतिक सफर 2011 में शुरू हुआ, जब उन्होंने अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले जन लोकपाल आंदोलन में भाग लिया। यह आंदोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ था और इसकी अपार सफलता ने केजरीवाल को राष्ट्रीय पहचान दिलाई। हालांकि, अन्ना हजारे ने राजनीति में आने से इनकार किया, केजरीवाल ने 2012 में आम आदमी पार्टी (AAP) की स्थापना की और भारतीय राजनीति में कदम रखा।
2. शुरुआती संघर्ष और सफलता
केजरीवाल की राजनीतिक यात्रा आसान नहीं थी। 2013 में पहली बार उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में अपने किस्मत आजमाई। शुरुआती संघर्ष के बावजूद, उन्होंने दिल्ली के तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को हराकर दिल्ली की राजनीति में हलचल मचा दी। हालांकि, उनकी सरकार अल्पमत में थी और सिर्फ 49 दिनों तक ही सत्ता में रह पाई, जिसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
इस कदम की काफी आलोचना हुई, लेकिन केजरीवाल ने 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में वापसी की। इस बार AAP ने 70 में से 67 सीटों पर जीत दर्ज कर एक ऐतिहासिक विजय हासिल की। इस जीत ने केजरीवाल को दिल्ली के सबसे शक्तिशाली नेताओं में शुमार कर दिया।
3. AAP का फोकस: जनता की सरकार
केजरीवाल ने खुद को 'आम आदमी' के नेता के रूप में प्रस्तुत किया। उनकी पार्टी ने बिजली, पानी, शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाओं पर ध्यान केंद्रित किया, जिसे दिल्ली के मतदाताओं ने सराहा। उन्होंने दिल्ली की राजनीति में 'विकास' के एजेंडे को प्रमुखता दी और कई कल्याणकारी योजनाओं की शुरुआत की। सरकारी स्कूलों और मोहल्ला क्लीनिकों की सफलता ने उनकी लोकप्रियता को बढ़ाया।
AAP की राजनीतिक रणनीति मुख्य रूप से भ्रष्टाचार विरोधी और सेवा-आधारित शासन पर केंद्रित थी। केजरीवाल की रणनीति ने न सिर्फ उन्हें दिल्ली के गरीब और मध्यम वर्ग का हीरो बना दिया, बल्कि राजनीतिक विश्लेषकों को भी चौंका दिया।
4. केंद्र से टकराव और संघर्ष
केजरीवाल का सफर सिर्फ सत्ता में बने रहने तक सीमित नहीं था। उनके कार्यकाल के दौरान केंद्र सरकार के साथ कई मुद्दों पर टकराव देखने को मिला। दिल्ली एक पूर्ण राज्य नहीं होने के कारण, कई शक्तियाँ केंद्र सरकार और उपराज्यपाल के हाथों में रहती हैं।
केजरीवाल ने कई बार केंद्र पर उनके काम में अड़चनें डालने का आरोप लगाया और यह मुद्दा उनके समर्थकों के बीच खूब चर्चा में रहा। वह अक्सर अपने अधिकारों के लिए लड़ते हुए नजर आए, जिससे उन्हें दिल्ली के मतदाताओं में एक योद्धा नेता के रूप में देखा जाने लगा।
5. चुनावी रणनीतियाँ और मजबूत पकड़
केजरीवाल की सबसे बड़ी ताकत उनकी चुनावी रणनीतियाँ रही हैं। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान अपनी योजनाओं और उपलब्धियों को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया। उनकी 'घर-घर' पहुँचने की रणनीति ने भी उन्हें बढ़त दिलाई। AAP का ग्राउंड स्तर पर संगठन मजबूत है, और केजरीवाल ने इसे और भी धारदार बनाने का काम किया।
2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी AAP ने प्रचंड बहुमत हासिल किया और 62 सीटों पर जीत दर्ज की। यह इस बात का सबूत था कि केजरीवाल की पकड़ अब भी दिल्ली में मजबूत है और उनके कार्यकाल को जनता ने सराहा है।
6. विपक्ष की चुनौतियाँ और उनसे निपटना
केजरीवाल के नेतृत्व में AAP को कई बार विपक्षी दलों से चुनौतियाँ मिलीं। भाजपा ने कई बार AAP की नीतियों और फैसलों पर सवाल उठाए, लेकिन केजरीवाल ने हर बार खुद को एक कुशल रणनीतिकार साबित किया।
उनके आलोचक उन्हें एक जिद्दी और विवादास्पद नेता मानते हैं, लेकिन उनके समर्थक उन्हें एक ऐसे नेता के रूप में देखते हैं, जो जनता के अधिकारों के लिए बिना रुके लड़ता है। यह दोहरी छवि भी केजरीवाल की लोकप्रियता में अहम भूमिका निभाती है।
7. 'वॉरलॉर्ड' की उपाधि और दिल्ली पर पकड़
केजरीवाल को दिल्ली का 'वॉरलॉर्ड' इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि उन्होंने राजनीतिक तौर पर एक ऐसी स्थिति हासिल कर ली है, जहाँ उनके खिलाफ कोई भी चुनौती देना आसान नहीं है। उन्होंने दिल्ली में एक मजबूत सत्ता केंद्र स्थापित किया है, जो उनके नेतृत्व और AAP की राजनीतिक रणनीतियों की सफलता को दर्शाता है।
उनकी प्रशासनिक नीतियों और टकराव की राजनीति ने उन्हें दिल्ली की राजनीति में एक अलग पहचान दी है, जो उन्हें एक 'वॉरलॉर्ड' की उपाधि दिलाने के लिए पर्याप्त है।