आर.जी. कर अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष 2020 में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना किया

आर.जी. कर अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल संदीप घोष 2020 में भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना किया

2020 में आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के पूर्व प्रिंसिपल डॉ. संदीप घोष को गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना करना पड़ा, जिसने पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य क्षेत्र में खलबली मचा दी। यह मामला उस समय सामने आया जब कई शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें कहा गया कि डॉ. घोष ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए आर्थिक अनियमितताएं की हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

डॉ. संदीप घोष, जो आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के प्रिंसिपल के रूप में कार्यरत थे, पर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं का आरोप लगाया गया था। आरोपों के अनुसार, उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कॉलेज की फंडिंग और संसाधनों के दुरुपयोग में शामिल होकर बड़ी धनराशि की हेराफेरी की थी। यह मामला तब प्रकाश में आया जब कई स्टाफ सदस्यों और छात्रों ने इस बारे में शिकायतें दर्ज कीं।

भ्रष्टाचार के आरोप

आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के भीतर हुए इस भ्रष्टाचार का मुख्य आरोप यह था कि संदीप घोष ने कॉलेज की विभिन्न परियोजनाओं के लिए सरकारी फंड के आवंटन में गड़बड़ी की। आरोप था कि उन्होंने ठेके देने में पक्षपात किया और अपने करीबी लोगों को अनुचित लाभ पहुंचाया। यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने उपकरणों की खरीद में भारी कमीशन लिया और कई बार बिना उचित प्रक्रिया के आपूर्ति के आदेश दिए।

शिक्षकों और छात्रों का विरोध

इन आरोपों के चलते कॉलेज के शिक्षकों और छात्रों ने विरोध करना शुरू कर दिया। उन्होंने कॉलेज प्रशासन और राज्य सरकार से मांग की कि मामले की निष्पक्ष जांच करवाई जाए। शिक्षकों ने आरोप लगाया कि संदीप घोष ने कॉलेज की प्रशासनिक प्रणाली का दुरुपयोग कर अपने निजी हितों के लिए धन का दुरुपयोग किया।

सरकारी जांच और कार्रवाई

राज्य सरकार ने मामले की गंभीरता को देखते हुए एक विशेष जांच टीम (एसआईटी) का गठन किया और मामले की विस्तृत जांच का आदेश दिया। जांच में कई वित्तीय अनियमितताओं और घोटाले की पुष्टि हुई। एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि डॉ. घोष ने कॉलेज के धन का दुरुपयोग किया और इसके लिए उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

इन जांच रिपोर्टों के आधार पर, राज्य सरकार ने डॉ. संदीप घोष के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की सिफारिश की। इसके बाद, उन्हें पद से हटा दिया गया और उनके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया शुरू की गई।

स्वास्थ्य क्षेत्र पर असर

यह घटना पश्चिम बंगाल के स्वास्थ्य क्षेत्र में भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने वाली महत्वपूर्ण घटना थी। राज्य के स्वास्थ्य संस्थानों की पारदर्शिता और जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े हो गए। कई सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने राज्य सरकार से मांग की कि इस तरह के भ्रष्टाचार के मामलों को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।

विपक्ष की प्रतिक्रिया

विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया और राज्य सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य के स्वास्थ्य क्षेत्र में भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के कारण ही ऐसे घोटाले हो रहे हैं। विपक्षी नेताओं ने यह भी कहा कि इस मामले को दबाने की कोशिश की जा रही है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।